Friday 17 June 2016

माइ चोइज।

माइ चोइज
आजादी के नाम पर अस्लीलता फैलाने की खुली छूट मागंने वाले तब क्या कहेंगे जब कोइ इसी आजादी की दुहाइ देकर बिच सड़क पर नगां होने की जिद्द करने लग जाऐ।
तब आप अपनी बहन बेटीयों को यह अजादी दिखाने वहाँ ले जाओगे या उस आजादी को दिखाने, उन्हे अपने घर बुलाओगे?

चल चल कलम, तु उठा कदम,

चल चल कलम, तु उठा कदम,
और लिखदे मन की बात को।
लिख, जो मन में है गुब्बार भरा,
लिख बेकाबु जज्बात को।।
बोली वो,
क्या लिखुं, गीत, गजल या शायरी,
या लिख दूँ एक कहानी।
बादल लिख दूँ, पर्वत लिख दूँ,
या नभ से गिरता पानी।।
,,,,
मैंने कहा, गीत, गजल और पर्वत छोड़,
रहने दे बरसात को।
लिखना है तो लिख, मेरे बेकाबु जज्बात को।।
,,,
वो बोली, देख भाई @अनंत, बैकती तो कर मत और मोबाइल में खुद से लिखले।।
@n@nt

ये जो नेता है, ये तो होता ही है खोटा।

ना सुबह को भुला, ना साँझ को लौटा,
ये जो नेता है, ये तो होता ही है खोटा।।
-
गिरगिट भी शरमाता है,
इसकी रगंकला को देखकर।
सापों ने ड़सना छाड़ दिया,
इसका डसना देखकर।।
कब किधर को मारे पलटीे,
ये कोइ भी ना जान सका।
कभी कभी तो अपनी कथनी,
खुद ये भी ना मान सका।।
सिधी भाषा में कहें तो, ये है बिन पैन्दे का लोटा।
ये जो नेता है, ये तो होता ही है खोटा।।

एक चिगांरी नजर तो आऐ,
और थोड़ा मतलब भी दिख जाए।
ले चमचों की फौज वहाँ,
ये दौड़ा दौड़ा जाए।।
तेल छिड़क कर मिट्टी का,
खुद ही आग लगाता है।
लेकिन कहता ये है कि,
वो तो आग बुझाता है।।
फूल दिखाकर दूर से, ये काटें हरदम बोता।
ये जो नेता है, ये तो होता ही है खोटा।।
@n@nt

मैं पुरुष हुँ।

मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
>>>
माना दुष्ट बहुत हैं पुरूषों में,
पर क्या सतं हैं होती नारीयाँ।
क्या पुरूष हैं केवल आनंद में,
और दुखी हैं सारी नारीयाँ।।
!
अक्सर तुमको देखा है,
पुरूषों को ललकारते।
गुनाह एक का, दोषी सारे,
सब हमको ताने मारते।।
!
जिसने किया, उसको बोलो,
उसका भी एक नाम है।
क्यों हर बार और हर जगह,
केवल पुरूष ही बदनाम है।।
!
मैं साथ नहीं अन्याय के,
ये तुम भी खूब जानती हो।
फिर भी हर गुनाह का जिम्मेदार,
तुम पुरूषों को मानती हो।।
!
हे देवी,
क्या तू इन सब बातों से अजांन है?
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
>>>
होंगे कई,
जिन्होने दर्द दिया होगा।
तेरे आधिकारों में,
शायद फर्क किया होगा।
किन्तु नेकी की मिशाल भी तो हैं,
जाने कितनो ने कई बार,
तेरा भी पक्ष लिया होगा।।
!
रावण मुझमें था, किन्तु राम भी तो था।
कशं मुझमें था, किन्तु श्याम भी तो था।।
तुम भी तो सुर्पनखा थी,
इसको क्यों भूल जाती हो।
जब भी देती हो मिशाल,
तुम तो सिता बन जाती हो।।
!
तुम कहती हो कि तुम झांसी की रानी थी।
तो बताओ जिसके कारण युद्ध हुआ,
कौन वो महारानी थी।।
वो भी तुम थी देवी,
ये दोनो रूप भी तेरे हैं।
ये तो गुणों पर निर्भर होता है,
क्योंकी गुण तो एसे ही कुछ मेरे हैं।
!
हे नारायणी,
क्या तू ही है इमानदार, और सारे पुरूष बेइमान हैं?
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
>>>
तुम्हारे बलिदानों का मोल नहीं,
जुल्मों को तुमने भी सहा था।
लेकिन मत भूल कि तुम्हारी रक्षा में,
रक्त पुरूषों का बहा था।
!
मैं तो आज भी तुझको देखकर,
नतमस्तक हो जाता हुँ।
जिंदगी की धुप में तपता,
तेरी छायाँ पाता हुँ।।
!
मां का आचंल तु ही है,
तु ही बहन का प्यार है।
पत्नी रूप में प्रेम है तु ही,
बेटी में तु सस्कांर है।।
!
पुजा, तुझको सम्मान दिया,
दुर्गा शाक्ति के रूप में।
गीता तक को अपनाया,
नारी के स्वरूप में।
!
हे पुज्यनिय,
क्या यही तेरा अपमान है।
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
>>>
मत भूलो कि वह भी एक पुरूष है,
जिसको बांधी तुमने राखी है।
और वह भी तो परूष है,
जो कि बनता जिवनसाथी है।।
!
फिर भी तु आ जाती है,
इस दुनिया के बहकावे में।
लेकर झडां शामिल होती,
झूठ के दिखावे में।।
!
क्यों तुमने यह भेद किया,
जिससे हो जाता टकराव है।
इन बातों से तो रिस्तो में,
आ जाता ठहराव है।।
!
मुझ बिन तु सपुंर्ण कहाँ,
तुझ बिन मैं अधूरा हूँ।
तू नहीं तो मैं खत्म,
तेरे साथ से ही पूरा हुँ।।
!
हे कल्याणी,
तुझे समझ ना आया अब तक, क्या तु बिल्कुल ही नादान है?
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
>>>
कितने पाप हैं पुरूषों के,
जिसमे नारी ने ना साथ दिया।
और कितने घर मैं बतलादूं,
जिनको नारी ने बरबाद किया।।
!
फिर केवल मैं ही क्यों,
संदिग्ध सा बन जाता हुँ।
हे नारी, मैं पुरूष हूँ,
इसलिए चुप रह जाता हुँ।।
!
मेरा भी मन है,
वो दुखता है।
कोई शक करे,
वो चुभता है।।
!
मुझे क्षमां करें, अगर मैं कड़वा ज्यादा बोल गया।
दिल में था गुब्बार सा, सब यहाँ पर खोल गया।।
!
अंत में प्रश्न बड़ा आसान है,
हे काली कलकत्ते वाली,
पुरूषों को ही गाली देना, क्या यह कोई समाधान है?
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?

अब नारी तो इस रचना को, चुल्हे में जलाएगी।
पुरूष इसे ना share करें, वरना तो शामत सी आ जाएगी।।
मेरा देखो क्या होता है, क्योंकी वो भी नेट चलाती है।
समझेगी इस बात को, या फिर वो तूफान मचाती है।।
पर मैं उसको समझा लुंगा, क्योंकी यह लिखने का एक कारण है।
First comment इस पोस्ट की, जहाँ इसका वर्णन है।।
@n@nt

डियर देश के नेता।

डियर देश के नेता, डियर देश के नेता।
तु तो बस है लेता, लेता, वापस कुछ ना देता।
डियर देश के नेता, डियर देश के नेता।।

जब जब होते नये चुनाव,
तु ले कटोरा आता हैI
नाक पौंछता छुटकु की तु,
फिर बड़कु सगं तु खाता है।।
दो पसिने बूँद जब,
तेरे माथे पर दिख जाती है।
चमचे वाले कैमरे से,
तब फोटो भी खिंच जाती है।।
बची कसर तो एप्पल से, सेल्फी ले ले बेटा।
डियर देश के नेता, डियर देश के नेता।

फिर जो तेरा नबंर लगता,
तु मुड़ के नहीं आता है।
ऐ सी वाले महलों में,
आराम तु फरमाता है।
रक्षक बनकर दूध का
तु बिल्ली सा मुस्काता है।
छाछ हमें तु बाँटता,
खुद रस मलाई खाता है।
मान गए ओ नेता तुझको, सबको खाबों में लपेटा।
डियर देश के नेता, डियर देश के नेता।।
@n@nt

Sunday 5 June 2016

कैसे बचेंगे पेड़??

हम सब ग्लोबल वॉरमिंग से चिंतित हैं.
असमय आने वाली बाढ़ से हम चिंतित हैं.
हर साल पड़ने वाले सूखे से हम चिंतित हैं.
>>
हम सब घटते हुए जंगलों से चिंतित हैं.
हम सब बढ़ते हुए प्रदूषण से चिंतित हैं.
>>
हम सब वन्य जीवों के उजड़ते आशियाने से चिंतित हैं.
जीवों के प्रति उदासीन इस जमाने से चिंतित हैं.
>>>
फिर हम दोष दुनिया को देते हैं
फिर हम दोष सरकारों को देते हैं
फिर हम दोष विभागों को देते हैं.
>>
अंत में हम केवल भाषण करते हैं.
खुद से पूछो हम प्रकृति के लिए क्या करते हैं???
>>>
इस पोस्ट का उद्देश्य किसी को दोषी बताना नहीं, लेकिन यह सवाल ज़रूर है कि इन सब मुसीबतों से बचाने वाले वृक्षों के लिए क्या हम कुछ कर सकते हैं?
शहरी जीवन के लिए तो पेड़ बचाओ आंदोलन फ़ेसबुक से आगे नगण्य है.
2-BHK फ्लॅट में कहाँ पेड़ लगाने की जगह होती है?
हम सभी के लिए पेड़ लगा पाना आसान नहीं क्योंकि किसी पेड़ को पनपने के लिए सबसे पहली आवश्यकता भूमि की होती है जो आज के युग में हम सभी के पास होना संभव नहीं है.
>>>
तो अब क्या किया जाए कि सभी जागरूक लोग वृक्षों-रोपण जैसा पुण्य का काम अपने सीमित संसाधनो के दायरे में कर सकें..
यह भाषण नहीं है,
अगर आप भी चिंतित लोगों में अपने आपको मानकर चलते हो तो, समाधान दो..
>>
केवल पेड़ बचाओ-पेड़ बचाओ कहने भर से थोड़े काम चलेगा.