Sunday 31 May 2015

भारत का बिखरा हुआ वजूद.


कृपया इस संदेश को एक भारतीय की नज़र से मात्र से देखें, यह किसी भी प्रकार की राजनीति से प्रेरित नहीं हैं।



हमारा देश भारत सदियों से लंबे उतार चढ़ाव से गुजरा है, कभी मुगलों ने तो कभी अँग्रेज़ों ने बीते समय काल में भारत पर कई आक्रमण किए, आक्रमण हमारी आज़ादी पर, हमारी सभ्यता पर, हमारी संस्कृति पर। उसका परिणाम यह हुआ कि भारतवासी भारत के वैभव पूर्ण इतिहास से अंजान ही रह गये।


यह तो एक universal truth है कि भारत वर्ष विश्व मे सबसे सभ्य समाज को अपने भीतर समाए हुए था। बाहरी ताकतों के इन आक्रमणो से हमारी व्यवस्था को इतना नुकसान पहुँचा जिसकी कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। एक बहुत ही सधी हुई, खुशहाल और maximum ratio of good health population का पतन प्रारम्भ हुआ। विश्व को एक आदर्श जीवन की राह दिखाने वाला भारत आज खुद बँटा हुआ और बदहाल सा नज़र आ रहा है।


हम कहते हैं कि हमने, लेकिन असल में हमारे पूर्वाजो ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है। गिनने लग जाएँ तो समय अधिक लगेगा।। एक-आध बता रहा हूँ और केवल वह जो कि किसी के पेटेंट नही है। 
जैसे कि
week system.
(Firstly adopted by india by following the planets)







Education system. 
(Worlds First University, destroyed by foreign attackers)





Uses of metal.





Side effect free Ayurveda.


         और Zero भी, 


जिसके बिना मॉर्डन साइन्स शायद पैदा भी ना हो पता। कोई भी calculation, कोई भी design इसके बिना पूरा तो क्या शुरू भी नहीं हो सकता...
आगे बात करते हैं, तो हुआ ये कि हमारी सभ्यताएँ उजडी ओर बिखरी भी, हम ने समेटा इसे बचा के रखने की कोशिश की। हम कामयाब भी हुए लेकिन हम से कुछ छूट गया पीछे और कुछ छीन के हमसे फेंक दिया गया। समय बीतने के साथ नई पीढ़ियाँ अपने अतीत को जान नहीं पाई और पारम्परिक शिक्षा के बावजूद विश्व स्तर पर अपने आप को पिछड़ा हुआ मान बैठी।  
कड़वा सच है लेकिन आज हमे अगर अपने भारतीय होने पर इतना गर्व महसूस होता है तो उसंका एक बड़ा कारण social media भी है। 
अधिकतर इस बात से सहमत होंगे लेकिन जिन्हे भरोशा करने में कठिनाई है उन्हे चलो अभी साबित करते हैं... बस एक मिनिट के लिए, 30 साल पीछे कहीं भी इंडिया मे पहुँच जाइए और अपना एक हम उम्र साथी वहाँ खोजिए, ज़्यादा टाइम ना लेना... और हाँ उससे दोस्ती भी कर लेना। अब ज़रा यह देखो कि वह इस दुनिया को कैसे देखता है, अपने आपको कितना ज़रूरी मानता है, उसकी पहचान क्या है?  क्या जानता है अपने बारे में वह, गोरों को देख कर उसकी सोच सोचो क्या होती होगी। कल्पना करना मुश्किल नहीं है क्योंकि शिक्षा का स्तर आज की तुलना में बहुत पीछे था।



कहने का अर्थ बस इतना है की पिछले कुछ सो सालो में हमने हमारे वैभव, हमारी समृद्धि को बेहिसाब खोया है... हमारी संस्कृति हमारे संस्कारो को इस हद तक दूषित कर दिया गया है कि आज हमारे बीच से ही कितनी घटिया और घिनोनी फसल पैदा होने लगी है, हम इसे नकार नहीं सकते। नशे के सारे धंधे सदाबहार है। लुटेरे, चोर, डाकू और बलात्कारी हमारे बीच में ही हैं, हमारी शक्लों में ही हैं। जेलें भरी पड़ी हैं लेकिन ये कम नही हो रहे। दिन ब दिन बढ़ते चले जा रहे है।


कुछ हमारी भूलें है इनमे और कुछ हमारी खामोशी भी इसका कारण है।  आज भी हमारी संस्कृति जो बची हुई है उस पर आघात हो रहे हैं, जो कुछ हो रहा है हम उसे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं लेकिन हमे दिखाया ऐसे जाता है हमे कोई problem ही नहीं है। क्या इतनी रफ़्तार से परोसी जा रही अश्लीलता हमे चाहिए... 


भारत की आबादी का कुछ प्रतिशत हिस्सा ही इसका समर्थन करता है और अपनी आज़ादी के नाम पर माँग करता है की हम उसे यह करने से नहीं रोकें। लेकिन क्यो? क्या यह देश हमारा नहीं जो एक ऐसे रूप में ढलता जा रहा है जो हमने कभी नहीं चाहा था। बाहर से आने वाले हर प्रदूषण को adopt करना ... इसे शायद adopt करना नहीं, करवाना कहना सही होगा... इस परंपरा को रोकने की ज़रूरत है। यह आपने भी महसूस किया होगा।
 आपको मालूम होगा latest adoption है gang rape।। अब हम क़ानून और सरकार पर अंगुली तो बड़ी आसानी से उठा लेते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि यह पैदा हमारे बीच में ही हो रहे हैं। अच्छा यहाँ एक बात बताना चाहूँगा कि बलात्कार हमारे भारत में क्या स्थान रखता था। यह मैं बताउँगा लेकिन किसी और example के द्वारा। हमारे यहाँ भी युद्ध होते थे लेकिन बाकी दुनिया मे उस दौरान होने
वाली युद्धों की तुलना में बहुत ही कम। और वो भी अधिकतर अहम के कारण लेकिन सबसे अच्छा और सराहनीय जो नियम था वह यह था कि सूर्यास्त के बाद और सूर्यास्त के पहले कोई हथियार नहीं उठा सकता था। सूरज के उतरने के साथ धनुष पर चढ़े बाण उतर जाते थे। सवाल अटपटा है लेकिन क्या वो सिपाही बलात्कार कर सकते थे...?? जहाँ शत्रुओं में भी एक भरोशे का नियम होता था, क्या वो दूसरो की पत्नियों का अपमान कर सकते थे। कमाल का law and order था।

चोन्किये मत।। क्योंकि किसी देश की आर्मी वहाँ के समाज मे से ही बनती है और जब law and order ख़त्म हो जाता है तो वह समाज उभर कर आता है। युद्ध मे जितने बलात्कार होते है उसका अनुपात बहुत बड़ा है...
एक दो example यहाँ बता रहा हूँ…

*हिटलर के समय में Russians द्वारा 2000000 German औरतों का रेप हुआ था।
* बांग्लादेश विभाजन के समय पाकिस्तान की आर्मी ने लगभग 200000 औरतों का रेप किया था।


अधिक जानकारी के लिए इस Link को देखा जा सकता है


भारत में महिलाओं के साथ क्षल होता था लेकिन उनका बलात्कार नहीं।।
*सती प्रथा का विश्व के सामने इस तरह प्रचार किया की हम खुद उसकी सचाई से दूर हो गये।

*भारत में अंग्रेज़ो के आने से पहले किसी महिला को डायन बता कर जलाने के कोई प्रमाण नहीं हैं।

अब हमारे सामने दो ही रास्ते हैं, या तो हमें अपने समाज का ढाँचा सही से व्यवस्थित करना है या अपने बचे संस्कारो को मैली हो चुकी गंगा में बहा देना है और गंगा को नाला घोषित कर देना है। हम अपनी परम्पराओं को नहीं बचाएँगे तो हमसे बहुत जल्दी सब कुछ छीन लिया जाएगा...

*आज भी हम होली दीवाली जैसे कई त्योहार मानते है। हमे त्योहारों का देश कहा जाता है।
*सिर्फ़ हम हैं जो किताब को पाँव छू जाने पर उसे माथे से लगते हैं क्योंकि हम उसमे देवी सरस्वती का का होना मानते हैं।
*अतिथि देवो भव:, ये आज भी हमारी परंपरा है।
*मा बाप की सेवा को हम धर्म कहते हैं।
*रक्षाबन्धन जैसा पर्व हम मानते हैं।

आश्चर्य की बात नहीं होगी यह यदि आने वाले समय में इसको हम रुडीवादिता कहने लग जाएँ।
हमारे पास इतने सब संस्कार होते हुए भी लेकिन हम बुरे हैं... हम मे ही हैं जो बेटी मारते हैं, हम मे ही हैं जो बेटी की इज़्ज़त बेचते हैं, अधिकतर हममे से ही हैं जो औरत के नंगे बदन को देख कर खुश होते हैं। और औरत इसे freedom of choice कहकर दिखाने में भी संकोच नहीं करती है।


सबसे अहम बात जिसकी जानकारी हर हिन्दुस्तानी को होनी चाहिए वह यह है कि हम हमारे आस पास जो देखते सुनते है वह सब कुछ सच हो यह ज़रूरी नहीं, कई बार सच को तोड़ मरोड़ के दिखाया जाता है। मुख्य मुद्दों से भटकने के लिए मीडीया का इस्तेमाल किया जाता है। 

यहाँ तक की Social Media पर भी बहुत बड़ी Men Power हमारी सोच को किसी व्यक्ति विशेष की और केंद्रित रखने का काम करती है। इनमे से कुछ तो share करने से पहले उसे पढ़ते तक नहीं हैं।
राजनीतिक दल भी इसमें पीछे नहीं है और यह उनकी आवश्यकता भी है। सभी दल अपने स्तर पर इसका उपयोग अपने तरीके से करते हैं...  कई सारी फेक प्रोफाइल बना कर Issues को Hype दिया जाता है। और दूध के धुले कोई नहीं हैं, कोई भी नहीं। कोई भी थोडा सा दिमाग़ लगा के ऐसी प्रोफाइल ढूंड सकता है।।

यहाँ एक बात यह सोचने वाली है कि ये राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि आज के समय मे इनका जनाधार भी एक दूसरे से सामने आ खड़ा हुआ है… आज़ाद भारत में भी हम आज एक दूसरे से लड़ रहे हैं। हम लोकतंत्र की परिभाषा को भूल बैठे हैं। हमारे समाज के ठेकेदार हमें लोकतंत्र कभी नहीं सिखाएँगे, हम सिख जाएँ तो उनकी राजनीति चल नहीं सकती।



हम उन प्रतिनिधियों को बड़ी शान से गाली देते हैं जिन्हे हमने खुद बनाया। हमे बार बार सामने वाली पार्टी की बुराई दिखा दी जाती है... हर पार्टी में भर भर के बुराई है लेकिन अच्छे लोग भी हर पार्टी में हैं, यह हमे मानना होगा।

मित्रों, यह सृष्टि का नियम है कि जहाँ अच्छाई है वहाँ बुराई भी है।  हाँ कहीं कम तो कहीं ज़्यादा है। इस के बारे में हम अनुमान बस लगा सकते हैं, बहुत कुछ पर्दे के पीछे सभी पार्टियों मे होता है जो इतिहास की शक्ल मे शायद आने वाली पीढ़ियाँ ही कहीं जान पाएँगी। आप और मैं जो मूर्खो की तरह अपने नायक की guarantee लेकर चिल्लाते हैं, वास्तविकता नहीं जानते।

 (अंत मे मुद्दे की बात)

हमे अपने आप को कठपुतली बनने से रोकना होगा... हमारा वैभव हमें खुद ढूँढना होगा... साथ दीजिए, हाथ मिलाइए क्योंकि अपना गौरव दुनिया के सामने हमें ही लाना होगा... देश को अब कुर्बानी की नहीं केवल सहयोग की ज़रूरत है... सहमत हैं तो इस संदेश को Like करें और दूसरो के साथ अवश्य Share करें।

" वसुधैव कुटुम्बकम् " यह हमारी धारणा है जो आज भी हम में जिंदा है। यह नारा किसने दिया, इसपर राजनीति करने से बचें और इसके मूलभाव को समझे और दुनिया को एक आदर्श कुटुम्ब बन कर दिखाएँ।

जय हिंद, जय भारत.



Anant.
Author - The World of The Yugandharas.



Saturday 30 May 2015

शैतान क्या हैं??

सन् 1902 में एक professor ने अपने छात्र से पुछा....
क्या वह भगवान था जिसने इस संसार की हर वस्तु को बनाया...?
छात्र का जवाब : हां।
उन्होंने फिर पुछा:-
शैतान क्या हैं...?
क्या भगवान ने इसे भी बनाया ?
छात्र चुप हो गया.......!
फिर छात्र ने आग्रह किया कि-क्या वह उनसे कुछ
सवाल पुछ सकता हैं...?
Professor ने इजाजत दी उसने पुछा-क्या ठण्ड होती
हैं..?
Professor ने कहा: हां बिल्कुल क्या तुम्हे यह महसुस नहीं होती....?
Student ने कहा:- मैं माफी चाहता हुं सर लेकिन आप गलत हो।
गर्मी का पुर्ण रुप से लुप्त होना ही ठण्ड कहलाता
हैं, जबकि इसका अस्तित्व नहीं होता। ठण्ड होती ही नहीं..?
Student ने फिर पुछा:- क्या अन्धकार होता हैं...?
Professor ने कहा:- हां,होता हैं....
Student ने कहा:- आप फिर गलत है सर।
अन्धकार जैसी कोई चीज नहीं होती वास्तव में इसका कारण रोशनी का पुर्ण रुप से लुप्त होना हैं सर हमने हमेशा गर्मी और रोशनी के बारे में पढा और सुना हैं।
ठण्ड और अन्धकार के बारे में नहीं।वैसे ही भगवान हैं....
और....
बस इसी तरह शैतान भी नहीं होता,l वास्तव में पुर्ण रुप से भगवान में विश्वास सत्य और आस्था का ना होना ही शैतान का होना हैं।
वह छात्र थे :- स्वामी विवेकानन्द..!
मित्रो जीवन में न दुख: होता हैं ना तकलीफ वास्तव में हममें जो खासियत, काबिलियत खुद में विश्वास और सकारात्मक रवैये की कमी को ही हम दुख: और तकलीफ बना देते हैं।
उसने बेहिसाब दिया हैं जो हम मानते नहीं मानस जन्म अनमोल जिसे हम पहचानते नही....

Friday 29 May 2015

प्राचीन भारत में रेप का स्थान...

प्राचीन भारत के इतिहास में स्त्रियों के साथ छ्ल किया जाता था पर रेप नही.... किसी भी पुस्तक में रेप का विवरण नही मिलता ।। रेप का प्रचलन मुगलों के आने के बाद मिलने लगा।
इसीलिए मुग़ल के आने के बाद स्त्रियों की सुरक्षा के लिए हिंदुओं ने मुस्लिम के यहाँ प्रचलित पर्दा प्रथा अपनाया।
प्राचीन वेदों और धर्मग्रन्थो में पर्दा प्रथा का कोई विवरण नही मिलता हे। भारत में ईसा से 500 वर्ष पूर्व लिखे गए इतिहास में पर्दा प्रथा का कोई जिक्र नही था।।
अपने रामायण महाभारत आदि में माता सीता, कुंती आदि को परदे में नहीं देखा होगा , अजंता खजुराहो में कलाकृतियों में भी बिना परदे के महिला दिखती हे।
धर्मशास्त्र का इतिहास पुस्तक में पेज क्रमांक 336 में सबसे पहले पर्दा महाकाव्य में मिलता हे। वो भी केवल राज घरानों के लिए,
यहाँ तक की गाव की स्त्रियाँ भी बिना परदे के रहती थी।
धर्म
शास्त्र के इतिहास पुस्तक 337 पर पर्दा प्रथा के दो कारन थे
1-महिला की सुरक्षा
2-हिन्दू स्त्री की सुरक्षा के लिए मुस्लिम महिला के पर्दा रखने के नियम को अपनाना हिन्दू द्वारा।

आज हम दुनिया में रेप पीड़ित राष्ट्र के नाम से जाने जाते हैं.

मूर्तीपूजा का अर्थ स्वामी विवेकानंद के द्वारा


स्वामी विवेकानंद को एक मुस्लिम राजा ने अपने भवन में बुलाया और बोला,”तुम हिन्दू लोग मूर्ती की पूजा करते हो! मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ती का.! पर मैं ये सब नही मानता। ये तो केवल एक पदार्थ है।” उस राजा के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी। विवेकानंद जी कि नजर उस तस्वीर पर पड़ी। विवेकानंद जी ने राजा से पूछा,”राजा जी, ये तस्वीर किसकी है?” राजा बोला,”मेरे पिताजी की।” स्वामी जी बोले,”उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिये।” राजा तस्वीर को हाथ मे ले लेता है। स्वामी जी राजा से :”अब आप उस तस्वीर पर थूकिए!” राजा :”ये आप क्या बोल रहे हैं स्वामी जी? स्वामी जी :”मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए..!” राजा (क्रोध से) :”स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना? मैं ये काम नही कर सकता।” स्वामी जी बोले,”क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, और जिस पर कूछ रंग लगा है। इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये सुन सकता है, और ना ही कूछ बोल सकता है।” और स्वामी जी बोलते गए,”इसमें ना ही हड्डी है और ना प्राण। फिर भी आप इस पर कभी थूक नही सकते। क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप देखते हो। और आप इस तस्वीर का अनादर करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हो।” थोड़े मौन के बाद स्वामी जी आगे कहाँ, “वैसे ही, हम हिंदू भी उन पत्थर, मिट्टी, या धातु की पूजा भगवान का स्वरूप मान कर करते हैं। भगवान तो कण-कण मे है, पर एक आधार मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ती पूजा करते हैं।” स्वामी जी की बात सुनकर राजा ने स्वामी जी से क्षमा माँगी ।

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