Friday 17 June 2016

मैं पुरुष हुँ।

मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
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माना दुष्ट बहुत हैं पुरूषों में,
पर क्या सतं हैं होती नारीयाँ।
क्या पुरूष हैं केवल आनंद में,
और दुखी हैं सारी नारीयाँ।।
!
अक्सर तुमको देखा है,
पुरूषों को ललकारते।
गुनाह एक का, दोषी सारे,
सब हमको ताने मारते।।
!
जिसने किया, उसको बोलो,
उसका भी एक नाम है।
क्यों हर बार और हर जगह,
केवल पुरूष ही बदनाम है।।
!
मैं साथ नहीं अन्याय के,
ये तुम भी खूब जानती हो।
फिर भी हर गुनाह का जिम्मेदार,
तुम पुरूषों को मानती हो।।
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हे देवी,
क्या तू इन सब बातों से अजांन है?
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
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होंगे कई,
जिन्होने दर्द दिया होगा।
तेरे आधिकारों में,
शायद फर्क किया होगा।
किन्तु नेकी की मिशाल भी तो हैं,
जाने कितनो ने कई बार,
तेरा भी पक्ष लिया होगा।।
!
रावण मुझमें था, किन्तु राम भी तो था।
कशं मुझमें था, किन्तु श्याम भी तो था।।
तुम भी तो सुर्पनखा थी,
इसको क्यों भूल जाती हो।
जब भी देती हो मिशाल,
तुम तो सिता बन जाती हो।।
!
तुम कहती हो कि तुम झांसी की रानी थी।
तो बताओ जिसके कारण युद्ध हुआ,
कौन वो महारानी थी।।
वो भी तुम थी देवी,
ये दोनो रूप भी तेरे हैं।
ये तो गुणों पर निर्भर होता है,
क्योंकी गुण तो एसे ही कुछ मेरे हैं।
!
हे नारायणी,
क्या तू ही है इमानदार, और सारे पुरूष बेइमान हैं?
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
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तुम्हारे बलिदानों का मोल नहीं,
जुल्मों को तुमने भी सहा था।
लेकिन मत भूल कि तुम्हारी रक्षा में,
रक्त पुरूषों का बहा था।
!
मैं तो आज भी तुझको देखकर,
नतमस्तक हो जाता हुँ।
जिंदगी की धुप में तपता,
तेरी छायाँ पाता हुँ।।
!
मां का आचंल तु ही है,
तु ही बहन का प्यार है।
पत्नी रूप में प्रेम है तु ही,
बेटी में तु सस्कांर है।।
!
पुजा, तुझको सम्मान दिया,
दुर्गा शाक्ति के रूप में।
गीता तक को अपनाया,
नारी के स्वरूप में।
!
हे पुज्यनिय,
क्या यही तेरा अपमान है।
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
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मत भूलो कि वह भी एक पुरूष है,
जिसको बांधी तुमने राखी है।
और वह भी तो परूष है,
जो कि बनता जिवनसाथी है।।
!
फिर भी तु आ जाती है,
इस दुनिया के बहकावे में।
लेकर झडां शामिल होती,
झूठ के दिखावे में।।
!
क्यों तुमने यह भेद किया,
जिससे हो जाता टकराव है।
इन बातों से तो रिस्तो में,
आ जाता ठहराव है।।
!
मुझ बिन तु सपुंर्ण कहाँ,
तुझ बिन मैं अधूरा हूँ।
तू नहीं तो मैं खत्म,
तेरे साथ से ही पूरा हुँ।।
!
हे कल्याणी,
तुझे समझ ना आया अब तक, क्या तु बिल्कुल ही नादान है?
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?
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कितने पाप हैं पुरूषों के,
जिसमे नारी ने ना साथ दिया।
और कितने घर मैं बतलादूं,
जिनको नारी ने बरबाद किया।।
!
फिर केवल मैं ही क्यों,
संदिग्ध सा बन जाता हुँ।
हे नारी, मैं पुरूष हूँ,
इसलिए चुप रह जाता हुँ।।
!
मेरा भी मन है,
वो दुखता है।
कोई शक करे,
वो चुभता है।।
!
मुझे क्षमां करें, अगर मैं कड़वा ज्यादा बोल गया।
दिल में था गुब्बार सा, सब यहाँ पर खोल गया।।
!
अंत में प्रश्न बड़ा आसान है,
हे काली कलकत्ते वाली,
पुरूषों को ही गाली देना, क्या यह कोई समाधान है?
मैं पुरुष हुँ,
मेरा नारी से सवाल है।
क्या हर पुरुष, होता एक समान है?

अब नारी तो इस रचना को, चुल्हे में जलाएगी।
पुरूष इसे ना share करें, वरना तो शामत सी आ जाएगी।।
मेरा देखो क्या होता है, क्योंकी वो भी नेट चलाती है।
समझेगी इस बात को, या फिर वो तूफान मचाती है।।
पर मैं उसको समझा लुंगा, क्योंकी यह लिखने का एक कारण है।
First comment इस पोस्ट की, जहाँ इसका वर्णन है।।
@n@nt

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